61 से 68 तक
61 इधर देखो जनार्दन अपनी बाँकी निगाहों की फांक से मेरी कामना की कक्ष में हो जाएगा मेरा मोह भंग। मेरे आंसुओं का बन जाएगा मेघ ममता के अकाल प्रदेश में बरसाने के लिए श्रद्धा का पानी मेरे आंसुओं से भीगा दे रास्ते, निपट पल्ली के अगम्य रास्तों पर, करेंगे कैसे सारे संसार का हाट? यहीं अशिक्षा मायावादी करते हैं नाच नेता डरा धमकाकर लेते हें उनका वोट, घुस देकर नोट, फिर मारते हैं चोट उन्हीं छोटे लोगों के छोटे गाँव में, मेरी बुद्धि, मेरी शुद्धि, मेरे धैर्य की हड्डी पर लोहे की छड़ बनाकर मोह की अस्थि से निर्माण करती है श्रद्धा की बस्ती। कन्हेई रे मांगता हूँ वक्ष,मोक्ष। विश्वरूपी वक्ष। 62 मैं क्या अयुत आँखों की व्यथा की नाव हूँ? चकाड़ोला के सागर में तैरता हूँ? प्रार्थना करता हूँ सभी जीवों के व्यथा को दूर करने की? बुद्धि को शुद्धि प्रदान करने की कर्म को धर्म देने की? मर्म को देने की श्रद्धा ? बंद करो मरुस्थल के तूफान की मृत्यु क्रूसेड़ी कालोनी की कूटनीति । साम्राज्यवादी व्यापारियों के षड्यंत्र का अहंकार। भगवान को छोडकर कोई बड़ा नहीं कोई छोटा नहीं आत्मा ठाकुर परमात्