41 से 50 तक


41
लाखों-लाखों कालामुंड की पारावार की भंगिमा
नील नीलश्वेत से तरंग रंग श्वेत कलश
पहुंडी समुद्र किनारे जाते समय या?
सहस्र चकाड़ोला
सागर के तट पर मैं
दर्शनरत,क्रंदनरत
सच्चिदानंद, सत्यशिव सुंदर,जगन्नाथ प्रभु वृत्त चक्षु
अद्भुत यह चकाड़ोला गोलक,पुलकित मुल्क
सफ़ेद अंश के भीतर, काले डोले
दासिया बाउरी के पखाल पानी में पालक की तरह
झिल्ली बोले जाने वाले पल्ली से
छोटे शहर, बड़े शहर मेट्रो,
ओड़िशा,भारत
समग्र पृथ्वी, ग्रह, उपग्रह  
छायापथ , निहारिका,
ज्योति विज्ञान की दूरबीन से दूर
कृष्ण गर्त्त, रेडियो, तारिकाएं  
ग्रहांतर और निहारिका
अन्य
विश्वब्रह्मांड
विश्वरूप जगन्नाथ के रूप में
मैं अर्जुन की तरह भयभीत सम्मोहित-सा।


42
मैं क्या बुद्ध वीणा की बुद्धि वन्या ?
शुद्ध सागर की उत्ताल तरंगो का धौत
मैं क्या करोड़ो बार जन्म लेता हूँ
मृत्यु के बाद विस्मरण की पूर्वकथा?
मैं क्या गौतम, विषाद योग का अर्जुन?
जेहादियों के साथ युद्ध नहीं करूंगा
मैं काफिर नहीं हूँ
हेडेन नहीं हूँ
मैं सनातनी धर्म मर्म मनस्तत्व के
अनेक मार्ग अनेक वर्ग
अनेक देवता, नव-नवकलेवर
मूर्ति-पूजा से ॐ आकाश, निराकार तक
दीर्घ ही दीर्घ।
मैं क्या भक्त मन के विश्वरूप का अर्घ्य नहीं हूँ?

43
मैं क्या गीता के गिटार के
तारों पर झंकृत करता हूँ
विश्वरूप मंत्र
मेरी स्वर्गीय प्रियतमा गीता कानन
मेरा बोधिद्रुम,मेरा नींबू वृक्ष
मेरे लिए जगन्नाथ पूर्ण सत्य
मेरे लिए जो सत्य है आपके लिए झूठ!
मेरे लिए ईसा सहते हें कांटो का कष्ट
खुदा समान मोहम्मद
महात्मा गांधी के मंत्र जहां
राम-धुन,श्याम-धुन,
अल्लाह, ईश्वर सब मेरे लिए अमृत?
मैं क्या सुदामा ब्राहमण
ब्रह्म जानने वाला ब्राह्मण?
प्रिय बंधु,कृष्ण के लिए निर्माल्य कणिका
विदुर की सागभाजी?
दासिया बाउरी के पखाल-पानी में पालक की तरह?
मैं क्या भक्ति प्रीति का कम्पास हूँ?
जो मापता है चकाड़ोला की व्याप्ति और गहराई।
प्रियतम चकाड़ोला।।

44
मैं क्या कामना, विनाश, साधना, वेदना बुद्ध की
मैं क्या कामना करते हुए नहीं नहीं बोलता हूँ।
कामना लिप्त, कामासक्त सुप्त?
होना चाहता हूँ
जीवन यज्ञ की जंग में
मैं क्या जीवन जंगल में तप नहीं करूंगा
हाट बाजार में जप नहीं करूंगा
उचित जगह नहीं कहकर करता हूँ कामना का घटाटोप  
अहरह?
जंगलों में फैले हैं माओवादी राक्षस।
शहरों में नेता राक्षस।
चारों तरफ दुष्ट ही दुष्ट
टमाटर रस या जीव-रक्त
रक्त खाते हैं, पीते हैं मनुष्य
लेने वाले नेता
देने वाले वोटदाता।
दलाल, हलाल,डॉलर षड्यंत्र में
चकाड़ोला या तो जल जाते हैं या पाताल में चले जाते हें।
सालवेग के साथ मैं क्रंदन करता हूँ
दर्शन किसका करूँ?

45
हे गौतम बुद्ध
मायादेवी के गोद की माया,
स्तन्य की माया,
लाड़-दुलार-वात्सल्य,
झूठ नहीं, माया नहीं,
देवकी के आँसू, यशोदा का मोह,
राधिका का प्रेम,मीरा की भक्ति,
नित्य-रास के वचन,
झूठ नहीं, झूठ नहीं।
यशोदा का वात्सल्य कान्हा
गोपा पति गौतम
काया वचन समस्त माया सच होने से भी?
उसके ऊपर बुद्ध,कृष्ण,राम,यीशु
हे चकाड़ोला!
तुम्हारा कृतज्ञ अश्रुल प्रणिपात 
तुम्हारे सभी दडों  के बावजूद मैं खुद को करूंगा दंडवत।
क्योंकि मेरे भीतर तुम आत्मारूपी जगन्नाथ।।

46
पंडों की दुष्टता,पंडिताई के
घमंड में
हे मेरे प्रियतम चकाड़ोला!
तुम तो मंदिर, मस्जिद,गिरजा घर में  
आकाश में, सागर नीलिमा में,
सागर तट पर, मर्त्य धूल पर,
बेईमानों के कोठों पर  
बाहर
नीचे, ऊपर
सब तरफ तो तुम ही तुम।
मैं क्या चैतन्य की चेतना?
अर्जुन वेदना और विश्वरूप दर्शन पर मुग्ध
शिष्य?
गीता का गिटार बजाता है?
चारों तरफ नारद मुनी की तरह!
तप करते-करते
जप करते-करते,
प्रिय विष्णु की महिमा गाते-गाते।
सही कहता हूँ,झगड़ा-झंझट नहीं लगाता।।

47
आसमान में उड़ता है
आसमान में डूबता है
गरुड के पीठ पर चकाड़ोला?
विश्वरूपीय सकल आसमान  
चक्रवात क्या चकाड़ोला का
सुदर्शन चक्र ?
संसार होता है वक्र ।
चारों तरफ ध्वंस की लीला ।
बरामदे और पिछवाड़े की तरफ ।
 कालचक्र का यह चक्रवात ?
सृष्टि-स्थिति, प्रलय, निलय संसार ।
क्षण भर में सब मूल्यहीन
क्षण भर गर्भ कष्ट के बाद
बंदीशाला में जन्म कृष्ण का
माया में छद्म
ओम ओम ओम
सृष्टि स्थिति प्रलय का वेश
हम नि:स्व।।  


48
चकाड़ोला तैरता है।
आसमान की बाढ़ में।
तारों-तारों में।
मेघों के उत्सव में  
सूरज-चाँद में
किरणों के युद्ध में
युद्ध करता हें,
सृष्टि रचना कर,बचाकर।  
मारते हें ताप से।
बरफ के चाप से।
असंख्य जीवों को।
असंख्य ज्ञान विज्ञान भरा विश्व।
अकेले में खोजता हूँ कोने-कोने में
धागे की गांठ खोलने के लिए  
जानने के लिए
तैरने के लिए ज्ञान के समुद्र में।  
अलंघ्य पारावार।
दुस्साहस मेरा
क्षमा करो,क्षमा करो।।

49
विश्वरूप, विश्वरूप
गीत गाता है
तारों-तारों में।
बेचारा मनुष्य सुनता है
कामना की कारा में।
जीवन के कैशोर्य,यौवन और जरा में  
कामना का विनाश क्या सहज है?
क्या समझता है मस्तिष्क?
कर्म में दिखना बहुत कष्टप्रद साधना  
इसलिए
मनुष्य ने  नहीं छोडी है वेदना।
तप,जप, अध्ययन
मानस, मंथन,
विफल होती है कामना की वस्तुएं अपने आप
इंद्रियों का इंद्र-जाल,
कामना का कैदी
फैशन और फिसादी का दिखावा
दे तो नहीं सकता शांति
ला नहीं सकता क्रान्ति।
भूले भटके  और भ्रांति।।

50
दशहरा अब दिशाहरा।
सीता,राम और हनुमान सब रावण के वन में बंदी
दश सिर अब कोटि-कोटि सिर।
भगवान और भगवती को
करने के लिए विसर्जन
डीजे के धुन पर नग्न-नृत्य
रावण के वंशज उन्मत।
देशी-विदेशी के नशा में चढ़ा है,
कोटि सिरों पर चढ़कर पित्त।
श्रद्धा के घर में ताला।
चला है पागल विलासी पाला। 
डीजे की आवाज से
कान सब हुए बधिर।
जिन्होंने एक दिन यीशु के शरीर में
पीटी थी कीलें  
वे अब बन्दूक की मून से  
समय-समय पर अपना कौशल दिखाते हैं।  


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