21 से 30 तक


21
तुम माता, पिता, भाई, बंधु, सखा हो
चकाड़ोला तुम विश्व रूप में
पुरुष हो या नारी
परंब्रहम निराकारी ।
यहाँ से मैं देखता हूँ चकाड़ोला
मेरी माँ हिंगुला क्षमा करो ।
माँ
तुम्हारी गोद में
जन्म मरण में हम नग्न
बीच में, हम घानी पीसने में व्यस्त  
कितने घमंड से जोड़ते हैं गाड़ी-घोडा
मार कर थोड़ा-थोड़ा महल रचते हैं  
कितने महल
भोग-विलास के बंगले ,
काले चश्मे से देखते हैं सृष्टि को
अल्प दृष्टि
आएगी कहाँ से असल संस्कृति  
सभ्यता के नाम पर असभ्यता
को हमारा घमंड  
दयालु माँ हिंगुला
क्षमा करो, क्षमा करो।
अमनुष्य हम मनुष्य होना चाहते हैं।
दुष्कर्म के दंड विधान को
सहेंगे अवश्य
पीठ पर हमारे तकलीफ लाद कर
जमा करो जमा करो ।
धीरे-धीरे मारना माँ मुझे
दोष मत निकालना
क्रोध मत करना
क्षमा करो, क्षमा करो ।।



22
हे भयंकर,प्रलयंकर
शांत,कान्त,शुभंकर हे,
काल,महाकाल,नित्य,नूतन
चिर विप्लव  
शोषण,पोषण,पाषाण कारा के  
हृदयहीन इस घृणित सभ्यता
हिंस्र धारा के
बोतल, कत्ल अत्र के धारा  
कैदखाने से पुकारता हूँ मैं
नमः शिवाय,
नीलकंठ हे!
सिखाओ तुम्हारा हलाहल पीना
तुम्हारे भक्त को  
मर्म मुक्त
सुकरात ने पिया था जैसे
गांधी और गोपबंधु की तरह
अपनाई थी जिन्होंनें तुम्हारी शिक्षा
जीवन की कुर्बानी  
ममता की मेहरबानी ।
इंद्र धनुष और गगन की नीलिमा में
जेम्स जींस तारापुंजों में
गीता के विश्वरूप के खेल में
आइंस्टीन प्रकाश के झूले में
हे गीर्वाण, दूरबीन में मुझे दिखादो  
 शांति और क्रान्ति में जितना
प्रीति अमृत चखा हो
सागर उर्मियों के नृत्य में
झाड ईगल के बिजली पंखों में
मरण मृत्यु
वज्र बादल डमरू तले
मुझे सिखाओ ।
पूजा अर्चना खाली वंचना
योग्य कर्म बिना
उन्हें देखने को मिलते है
धर्म के नाम पर कलि कदल,
रण धंदोल
धर्म, मर्म, क्लांत,
नम्र, भद्र शूद्र, श्रद्धा  
करुणा, झरना, वाणी हार माला
किसके लिए नहीं माना।
सिनेमा पागल शृंगारी
इस अंधे युग के यात्री
अभिनय इस युग का निहायती श्लाघ्य?
अपने आपको बचाना चतुराई का कार्य।
मंथर सरलता
निपट बुद्धू बोकामी
ढगते सारे शिक्षा लक्ष्य
सकल अन्य मूल्यबोध
पुराने कालिया अकामी ।
तीसरे नेत्र का आलोक दिखा दो
सूर्योदय के मंदार में
इस अंधे युग के यात्री को।  


23
कर्म के फल प्राप्ति में
दुख भी मिल सकते हैं।
 कर्म आवश्यक है,
फायदा पाने के लिए नहीं
सुख-दुखों के ऊपर एक
समशीतोष्णभाव
यही एक लाभ।
अधिक करने से लोभ,
नैराश्य और क्षोभ ।
प्यार करने का अर्थ देना
लेन-देन का यह संसार
दहेज,हत्या, दंगा-फसाद  
वेदना से भरा
समाज नमाज पढ़ता है
जबर्दस्ती श्मशान जाने के लिए।
अल्लाह अथवा ईश्वर से
राम या कृष्ण भिन्न
भांड भक्त मिथ्या घंटी बजाते हैं।
नाम असंख्य है, विश्व सृष्टा के।
जगन्नाथ का केवल एक नाम  
सारे समस्याओं का समाधान सूत्र।
धर्म खाली अहंकार का खेल घर
नहीं समझ पाते धर्म का मूलमंत्र।
पाप के ताप से
पाप के चाप से
हो गए थे हमारे पूर्वपुरुष कोयला 
हम भी होंगें वैसे ही
नहीं बचने की कोई राह ।
मोक्ष का रास्ता प्राणवायु का स्पर्श
जलने जलाने का हर्ष,
मरने का हर्ष,
मनुष्य का मन, ऐसा घंच वन
ऐसी चिंता कोयल, मोर की तरह,
गलत चीजों को मानकर
रहते जैसे जंगल में
सच में सच्चे मन से


24
भगवान क्या ठग के?
चोर,तस्कर,पाजी के हैं?
 पादरी, मौलवी या काजी के हैं?
गांधी या गोपबंधु के नहीं है
कहता हूँ अनेक उदाहरण।
एक हाथ में धर्म की पोथी
और दूसरे हाथ में गोली, बंदूक या बम
या व्यापारिक कूटनीति
सभी धर्मो पर अब काला छींटा।
इसका मतलब क्या धर्म, मर्म मिथ्या ?
सभी धर्मो को ध्वंस करने वाले
अफीमची या श्मशानवादी
सर्वहारा के अहंकारी जीवन हंता  
कोई धर्म के नाम पर मारता है
कोई नीति के नाम पर मारता है ।
कोई शक्ति के लिए मारता है
ठगों के हाथों में भगवान बेचे जाते हैं
ठाकुर के हाथों से ठगों का भी लोप होता है ।
मुल्ला, मौलवी, पुरोहित या
साम्राज्यवादी पोप
ठाकुर के नाम पर और मत चलाओ
कूटनीतिक पाखंड ।
25
हे चकाड़ोला,
मैं बोकाड़ोला,पूछता हूँ प्रश्न
तुम्हारे काले डोले क्या विराट कृष्णगर्त्त है
तुम्हारे श्वेत पटल क्या तारों के सम्मिलित आलोक
तुम्हारे अबोधता में माधुर्य?
तुम्हारे विश्वरूपी विपुलता में विस्मय  
तुम्हारा उदर क्या उपनिषदों का हिरण्यगर्भ?
तुम्हारे हाथ-पाँव असीम रश्मि-पुंज?
भक्त के आश्लेष से
तुम्हारे हाथ-पाँव सम्पूर्ण होते हैं?
जिस शिल्पी ने तुम्हें कल्पना कर
नीम के तने से रूप दिया है
वे महान शिल्पी है।
परंब्रह्म बल और भद्रता का प्रतीक।
नारी शक्ति, उत्तम महिला, जोकि अपार शक्ति का पारावार है।
और करने योग्य जगन्नाथ
अयुत आंसुओं में अववाहिका का विग्रह,
तुम्हारी उपलब्धि तुम्हारी कृपा और अनुग्रह।।
26
अनंत आकाश में कोटि कोटि तारिकाएँ  
एक प्रकाशवर्ष अनेक इकाई
तारामंडल, अनेक पृथ्वियां
अनेक प्राणी
अनेक जड़
अनेक शक्ति ।
चकाड़ोला,
आपके दिगंत विस्तृत नेत्रों के अंदर
विश्वरूप,
रोम-रोम में ब्रहमाण्ड पुंज
मैं अकेला सोचता हुआ,हँसता हुआ,
रोता हुआ, प्यार करता हुआ पिंड।
परिव्याप्त होने की कामना में
सकेंद्रित अनेक वृत्तों की तरह
मैं एक केंद्र
मैं विराट विश्व का एक बुद्धिमान बिन्दु
लिखता हूँ आँसू बहाता हूँ, हँसता हूँ  
मेरी प्रिय स्वर्गीय धर्मपत्नी से लेकर नाती के अधरों के माधुर्य से लेकर
बचपन में बच्चों कों किए गए लाड़-दुलार तक
उनके स्वास्थ्य और भविष्य के लिए।


27
हे प्रियतम जगत-जनक जगदीश्वर
ब्रह्मा,विष्णु,महेश्वर,
राम,कृष्ण कृपा करो।
राम भक्त महावीर हनुमान  कृपा करो।
तुमसे क्या मांगूगा  
मुझे क्या जरूरत है,
मुझसे आप बेहतर जानते हैं।
सब कुछ तो है।
केवल मेरी प्रियतमा पत्नी नहीं है।
अधर मधु उसका चख नहीं पाता
उसका अमृत दर्शन कर नहीं पाता
उसकी सेवा,उसका आश्लेष कर नहीं पाता
आप समझाएँगे
अर्जुन को समझाने की तरह
शरीर मरता है मगर आत्मा नहीं मरती  
मैं मेरी प्रियतमा की आत्मा को खोज रही हूँ
हे परमात्मा
हे प्रेमात्मा  
राधा की आराधना के आकर्षक कृष्ण
मीरा के साथ एकाकार विलीन, मेरे प्रियतम चकाड़ोला।।

28
आपकी चकाड़ोला को
सिनेमा के पर्दे की तरह देखता हूँ मैं
सच्चा अभिनय,
जन्म से मृत्यु तक
मृत्यु से जन्म तक
शिशु की तुतलाहट?
किशोरों में अध्ययन की जिज्ञासा, काम-धाम
युवक-युवतियों का प्रगाढ़ शृंगार  
रति में आरती
विस्तीर्ण विश्व-लीला
लीलामय कर देती हैं तुम्हें
भक्ति,शक्ति का अश्रुल प्रेम
सागर किरणों की तरह तैरता है नाविक में
और देखते हैं
पुरी के समुद्र-ज्वार में तैरता आता है
चार काठ।
फिर जगन्नाथ, बलभद्र,सुभद्रा और सुदर्शन
सभी के फोटो पर, विशाल फूलों के मुकुट  
समुद्र कूल और बड़दांड पर होती है भीड़
उस समय सोचता हूँ, इन सभी के भीतर हूँ मैं।


29
यथार्थ भाव की संस्था  
जो ऊपर उठाती है
मनुष्य को,
साधारण कामना,वासना के स्तर से
वही है धर्म।
क्रम उत्थान से मोक्षमुखी भाव
धर्म का मर्म
धारक धर्म।  
  मारक घातक अत्याचारी
आनाचार संहति,संगतिहीन संगीत
अनेक घातक विश्वास
धर्म बिना चल नहीं पाएगा
साधारण मनुष्य
असाधारण चल सकता है।
उसका जीवन धर्म
धर्म के नाम पर हत्या के वाक्य,
कसाई की आजीविका।।

30
भाव-संस्था
विश्वास-पुंज
विभिन्न हो सकते हैं
मगर मारपीट क्यों?
हमारे पास बुद्धि  विश्लेषण नहीं है?
मतान्ध धार्मिक नहीं है हम।
तुम्हें मारने के लिए पीछे पड़ेंगे।
तुम्हें मारेंगे,
मन की एकाग्रता के लिए,
भंगुर स्थिति,
पलायन स्थिति  
अस्थिति को
व्यवस्थित करने के लिए
आवश्यक है विश्वास पुंज
यही धर्म है।
धर्म धारक ईश्वर
चकाडोला।  

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